इसलिए एक सीधे साधे मुसलमान के साथ इससे बड़ा फरेब और कोई हो ही नहीं सकता.
जाकिर नाइक अपने इस कारनामे से जिन जिन बुरी बातों के सरताज बने हैं, वे हैं-१.
और इसी कारण आज दुनिया के अधिकांश मुसलमान मुल्कों में कादियानी फिरके को सरकारी तौर पर भी काफिर माना जाता है.
फिर उसी तरह मुहम्मद और फिर मिर्ज़ा गुलाम को भी उसी पैगम्बरी परंपरा का दूत दिखाते हैं.
कादियानी फिरके के आलावा कोई और मुसलमान इस को नहीं मानता.
लफ्ज़ दर लफ्ज़ (शब्दशः) किसी की किताब से बिना पूछे चोरी करना और उसका शुक्रिया अदा करना तो दूर, उसका नाम भी नहीं लेना. एक कादियानी (काफिर) की बातों को मुसलमानों के बीच इस्लाम कह कर पेश करना यानी मुसलमानों को धोखा देना. और इस सारे काम की वाहवाही खुद लूटना जबकि यह किसी और का काम था और खुद को मजहबी मामलों का आलिम कहकर मुसलमानों को गुमराह करना. अपने चाहने वालों को कादियानियों के सामने जलील होने की वजह बनना. वेदों में मुहम्मद का दावा होने पर भी वेदों को इल्हामी ना मानना. बड़ी चालाकी से कादियानी सिद्धान्तों को मुसलमानों में चुप चाप बढ़ावा देना ताकि किसी को कोई शक न हो.इन सब बातों से इस बात का शक होता है कि कहीं जाकिर भाई मुसलमान के भेष में कादियानी तो नहीं?
क्योंकि कादियानियों को ऊपर से गलत कहकर सीधे साधे मुसलमानों की भीड़ जुटाकर जाकिर भाई जब कादियानी किताबों की खासमखास बातों को ही फैलाने में लगे हैं तो इसका और क्या मतलब निकलता है?
हम खुद जाकिर भाई की अधिकतर बातों से इतेफाक (सहमति) नहीं रखते थे लेकिन इस्लाम के लिए जाकिर भाई की कोशिशें काबिल ए तारीफ़ जरूर समझते थे.
हम अब तक यही सोच रहे थे कि जाकिर भाई इस्लाम की खिदमत में जी जान से हाजिर हैं.
डॉ जाकिर नाइक हजारों की भीड़ में इस्लाम और बाकी मजाहिब (धर्मों) पर अक्सर बोलते देखे जाते हैं.
वे खुद इस बात को बड़े फख्र से पेश करते हैं कि वो इस्लाम और बाकी मजहबों के तालिब इ इल्म (विद्यार्थी) हैं.
मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी को अपनी नबुव्वत पर इतना भरोसा था कि उसने उन लोगों को दोजख की धमकी दी जो उसमें ईमान नहीं लाये.अब यहाँ बात आती है कि जाकिर भाई ने ऐसे आदमी की किताबों से चोरी करके मुसलमानों को गुमराह किया जो मुहम्मद को आखिरी रसूल नहीं मानता था, जो गैर कादियानियों के लिए सदा रहने वाली दोज़ख मानता था, जो अल्लाह का इंसान बनकर धरती पर आना मानता था, जो राम, कृष्ण, बुद्ध, नानक वगैरह को भी मुहम्मद की तरह ही पैगम्बर मानता था.
मौलाना अब्दुल हक़ विद्यार्थी ने यह किताब लिखी ही कादियानी फिरके के सिद्धांतो को फ़ैलाने के लिए.
इसके लिए उन्होंने न जाने कुरान, हदीस, सीरत, वेद, पुराण, उपनिषद्, भगवद गीता, मनुस्मृति, महाभारत, तौरेत, बाईबल, धम्म पद, गुरुग्रंथ साहिब, और न जाने क्या कुछ न सिर्फ पढ़ डाला है बल्कि याद भी कर लिया है.
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